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दिल की दहलीज़ के उस पार (Dil ki dehleej ke (in Hindi)
Roy, Nirupama
Synopsis "दिल की दहलीज़ के उस पार (Dil ki dehleej ke (in Hindi)"
जीवन एक सरल सीधी रेखा सा कहाँ है...? कई तिरछी मुड़ी हुई कठिन राहों और पगडड़ियों का साक्षी है। एक स्त्री.....जो केवल बेटी, बहन, माँ, पत्नी ही नहीं स्वयं में एक विराट सत्ता है। जिसका भान उसे विरले ही होता है। मन ही मन वेदना का अम्बार समेटे हुए भी अधर पर मुस्कान मंडित मौन रखने वाली स्त्री के दिल की दहलीज़ के दोनों तरफ संवेदनाओं का सागर उमढ़ता रहता है। कई बार सागर का उफान सीपियों और कुछ अवांछित पदार्थों को भी मन के तल पर फेंक देता है। और कभी तो कई सुन्दर सीपियों को दिल की दहलीज़ के उस पार छोड़ना नियति बन जाती है। तभी तो कभी वो कुसमुमाला का जीवन जीने पर विवश हो जाती है तो कभी मन से चाहकर भी माथे पर नीली बिन्दी नहीं लगा पाती। कई बार उसके मन में प्रश्न उठते हैं.......... जब नन्ही कन्या भ्रूण गर्भ में ही आर्त्तनाद पर विवश हो कह उठती है, अगर मैं होती। एक नई भोर की प्रतीक्षा में आतुर आज की लड़की इतिहास तो रचती है पर वैधव्य-योग जैसी कई विडम्बनाओं की श्रृंखला में आबद्ध होकर एक नहीं पाँचवी कथा का पात्र भी बन जाती है। स्त्री प्रताड़ना की भाषा इस बाधाग्रस्त समाज और परिवेश में कौन समझने का प्रयास करता है। जिन्दगी के भंवर में अपना स्वत्व खोने पर विवश दीवारों के उस पार