Ek Hi Chehra Tha Ghar Main - Shaad, Khushbir Singh
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Ek Hi Chehra Tha Ghar Main
Shaad, Khushbir Singh
Synopsis "Ek Hi Chehra Tha Ghar Main"
कहने को एक आईना टूट बिखर गया लेकिन मिरे वजूद को किरचों से भर गया मैं जाने किस ख़याल के तनहा सफ़र में था अपने आहूत करीब से होकर गुज़र गया इक आशना से दर्द ने चौंका दिया मुझे मैं तो समझ रहा था मिरा ज़ख्म भर गया शायद कि इन्तजार इसी पल का था उसे कश्ती के डूबते ही वो दरिया उतर गया मुद्दत से उसकी छाँव में बैठा नहीं कोई इस सायादार पेड़ इसी ग़म में मर गया खुशबीर सिंह 'शाद' का कलाम उर्दू के अदबी हलकों में दिलचस्पी से पढ़ा जा रहा है। एक ज़माना था जब मुशायरों में कुबूले-आम मेयार की सनद हुआ करता था लेकिन अगर किसी का क़लाम समाईन को भी मुतासिर करें और क़ारीन को भी मुतवज्जा करने में कामयाब हो तो उसका इस्हाक़ मुसल्लम हो जाता है। - गोपीचंद नारंग.